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शनिवार, 30 जनवरी 2016

२०२. चट्टान


मैं रास्ते पर पड़ा 
कोई कंकड़ नहीं 
कि तुम ठोकर मारो,
दूर फेंक दो मुझे
और अपने होंठों पर 
विजयी मुस्कान लिए 
आगे बढ़ जाओ.

मैं चट्टान हूँ,
मुझे ठोकर मारोगे 
तो चोट ही खाओगे,
नहीं होगा मेरा 
कोई बाल भी बांका,
मैं टिका रहूँगा 
बिना हिले 
वहीँ का वहीँ,
तुम्हारा रास्ता रोके.

मुझसे टकराना है 
तो दलबल के साथ आओ,
छैनी-हथौड़ों के साथ आओ,
गोला-बारूद के साथ आओ,
मुझे दबाना है 
तो दमन की तैयारी के साथ आओ. 

शनिवार, 23 जनवरी 2016

२०१. शुरुआत

बहुत उजाला है यहाँ,
दिए यहाँ बेबस लगते हैं,
पता ही नहीं चलता 
कि वे जल रहे हैं.

यहाँ दियों का क्या काम,
चलो, समेटो यहाँ से दिए,
खोजते हैं वे झोपड़ियाँ,
वे गली-कूचे, वे कोने,
जहाँ घुप्प अँधेरा है,
जहाँ दियों की ज़रूरत है.

एक-एक दिया भी जलाएंगे वहां,
तो शुरुआत के लिए बहुत होगा.

शुक्रवार, 15 जनवरी 2016

२००. प्रेम कविता

मैं नहीं चाहता 
कि कोई जाने 
तुम्हारे बारे में,
हमारे बारे में 
और इस बारे में 
कि तुम मेरे लिए क्या हो.

उस चाहत का,
जिससे लोग अंजान हों,
मज़ा ही कुछ और है,
जैसे दो किनारे साथ-साथ 
मीलों तक चलते रहें 
और नदी को पता भी न चले.

सुनो, कोई नहीं जानता 
कि सालों पहले मैंने 
जो कविता लिखी थी,
वह दरअसल एक प्रेम कविता थी 
और उसकी पंक्तियों के बीच 
मैंने तुम्हें कहीं छिपाया था.

बहुत चर्चा हुई उस कविता की,
बहुत सराहा उसे लोगों ने,
पर नहीं खोज पाए तुम्हें.

सिर्फ़ मुझे पता था 
कि वह एक प्रेम कविता थी 
और उसकी पंक्तियों के बीच 
मैंने जिसे छिपाया था,
वह कोई और नहीं,
तुम थी.

शनिवार, 9 जनवरी 2016

१९९. लड़ाकू विमान

सैनिक दफ़्तरों के आगे 
दिख जाते हैं कहीं-कहीं
बड़े-बड़े लड़ाकू विमान,
असली, पर उड़ने में अक्षम.

कभी जो बातें करते थे हवा से,
बरसाते थे गोले,
अब चल-फिर भी नहीं सकते,
चुपचाप बेचारे से खड़े हैं,
नुमाइश की चीज़ बने बैठे हैं.

कभी-कभार उन पर बैठ जाती है 
थकी-मांदी कोई चिड़िया,
थोड़ी देर सुस्ताती है,
फिर उड़ जाती है 
और वहीँ का वहीँ रह जाता है 
वह विशालकाय लड़ाकू विमान.

दरअसल कोई कितना ही 
बड़ा लड़ाका क्यों न हो,
एक दिन बंद हो ही जाता है 
उसका उड़ना.

शनिवार, 2 जनवरी 2016

१९८. नया साल


एक बार फिर आ गया नया साल,
एक बार फिर से हम नाचे,
फिर से मनाईं खुशियाँ,
फिर से की आतिशबाजी,
फिर से किए संकल्प.

नए साल के संकल्प 
पुराने थे, बासी थे,
हमने पहले भी किए थे,
पिछले साल, हर साल,
जो पूरे नहीं हुए,
हमने पूरे किए ही नहीं,
पूरा करने की कोशिश ही नहीं की.

मैं सोचता हूँ 
कि कैसे हो जाते हैं हम 
नए साल की शुरुआत में 
इतने बेशर्म,
कैसे विदा कर देते हैं 
पुराने साल को 
इतना खुश होकर,
जैसे कि हमने 
पूरा उपयोग किया हो उसका,
पूरा न्याय किया हो उसके साथ.