सोमवार, 18 सितंबर 2023

७३४.अजीब बारिश

 



ये कैसी बारिश है?


पीले पत्ते शाख़ों पर हैं,

हरे झर रहे हैं,

पके फल पेड़ों पर हैं,

कच्चे टूट रहे हैं. 


ये बारिश है कि बूंदा-बांदी?

न कोई बादल,

न कोई गड़गड़ाहट,

बिजली की कौंध भी नहीं,

उम्र तमाम हुई,

पर देखी नहीं कभी ऐसी बारिश. 



आसमान से अचानक

गिर पड़ती हैं बूंदें,

न कोई सूचना,

न कोई संकेत,

न कोई चेतावनी. 


सूरज चमकता रहता है 

आकाश में बेशर्मी से,

देखता रहता है तमाशा,

झरती रहती हैं बूंदें,

पर नहीं बनता कहीं 

कोई भी इंद्रधनुष.


धुंधले पड़ते रहते हैं रंग,

गिरते रहते हैं पेड़ों से 

कच्चे फल और हरे पत्ते,

समझ में नहीं आता,

ये कैसी बारिश है? 

बुधवार, 13 सितंबर 2023

७३३. हिन्दी की गुहार

हिंदी दिवस के अवसर पर मेरी कविता ‘हिन्दी की गुहार’. इसमें हिंदी के विकास के लिए आदान- प्रदान के महत्व को रेखांकित किया गया है.

***
बंद मत रखो मुझे,
खुले में आने दो,
साँस लेने दो.

पहुँचने दो मुझ तक
हवाओं के झोंके,
बारिश की बूँदें,
सूरज की किरणें,
फूलों की ख़ुशबू ,
कोयल के गीत.

जानता हूँ मैं
कि यह तुम्हारा प्यार है,
जो मुझे बाँधता है,
पर वह प्यार ही कैसा,
जो जान लेकर माने,
ज़रा सोचकर देखो,
मुझे बचाने के लिए
तुम जो कर रहे हो,
वही तो मार रहा है मुझे.

मुझे ख़ुश रखना है,
फलते-फूलते देखना है,
तो दूसरों को मुझसे,
मुझे दूसरों से मिलने दो,
समय के साथ चलने दो,
बाँधो मत, मुझे बहने दो


शुक्रवार, 8 सितंबर 2023

७३२. तुम्हारे जाने के बाद

 


हमारा यह छोटा-सा फ़्लैट 

तुम्हारे जाने के बाद 

बहुत बड़ा लगता है, 

तुम्हारा सामान तो उतना ही है,

पर लगता है, 

बहुत जगह घेरती थी 

तुम्हारी बातें, तुम्हारी हँसी।

**

बहुत साफ़ रहता है यह घर,

न कोई काग़ज़ फेंकता है,

न छिलका, न कुछ और, 

तुम्हारे जाने पर जाना 

कि इतनी सफ़ाई 

मुझे पसंद नहीं है. 

**

तुम्हारे जाने के बाद 

कुछ भी नहीं रहा पहले-सा,

घर तो वही है,

पर काटता बहुत है,

समझ में नहीं आता 

कि पुराना घर है 

या नया जूता?


गुरुवार, 31 अगस्त 2023

७३१.धागा

 


पत्थर टूट जाते हैं, 

चट्टानें दरक जाती हैं,

पहाड़ तक नहीं झेल पाता 

डायनामाइट का विस्फोट,

पर यह पतला-सा धागा 

न जाने कितना मज़बूत है 

कि कभी टूटता ही नहीं.  


हाँ, कभी-कभार उलझ जाता है, 

पर ज़रा-सी कोशिश से 

सुलझ भी जाता है,

जैसे घर की दीवार में 

हल्की-सी दरार आ जाए,

जो आसानी से पट जाय 

मुट्ठी-भर सीमेंट से. 


यह कोई धागा है 

या हरी-भरी घास है,

जिसकी जड़ें गहरी हैं,

जो लचक कर रह जाती है 

भयंकर आंधी-तूफ़ान में,

जिसमें धराशाई हो जाते हैं 

ऊंचे-ऊंचे पेड़.



सोमवार, 28 अगस्त 2023

७३०.पुराना नोट


 

मैं फटा-पुराना नोट हूँ, 

किसी को अच्छा नहीं लगता,

पर कोई फेंकता भी नहीं, 

सब जानते हैं मेरी क़ीमत. 

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हमेशा इतना गंदा नहीं था मैं, 

कभी चमचम चमकता था, 

औरों के कारण ऐसा हुआ हूँ, 

कभी कड़क था मैं भी 

उतना ही, जितना तुम हो. 

** 

पुराने नोट ने नए से कहा,

इतना मत इतराओ,

मूल्य मेरा भी उतना ही है,

बस तुम शोर ज़्यादा करते हो.