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बुधवार, 2 जुलाई 2025

813. चढ़ूँगा, तभी तो पहुंचूंगा

 



न जाने कब से खड़ा हूँ 

इस भीड़-भरे प्लेटफ़ॉर्म पर,

ट्रेनें आती जा रही हैं 

कभी इस ओर से, 

कभी उस ओर से, 

रुक रही हैं ठीक मेरे सामने।


चढ़ रहे हैं यात्री 

अपनी-अपनी ट्रेनों में 

पहुँच ही जाएंगे गंतव्य तक,

पुराने यात्रियों की जगह 

आ गए हैं अब नए यात्री,

पर मैं वहीं खड़ा हूँ, जहां था। 


कब तक करूंगा इंतज़ार,

कब तक रहूँगा दुविधा में, 

अब चढ़ ही जाता हूँ 

किसी-न-किसी ट्रेन में,

चढ़ूँगा, तभी तो पहुंचूंगा

कहीं-न-कहीं, कभी-न-कभी। 


5 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 03 जुलाई 2025 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

    जवाब देंहटाएं
  2. जहाँ पहुँचेंगे वहाँ से भी भगाए जाएँगे इससे तो अच्छा है जहाँ हैं वहीं रहें और देखते रहें दुनिया की रेलमपेल

    जवाब देंहटाएं