न जाने कब से खड़ा हूँ
इस भीड़-भरे प्लेटफ़ॉर्म पर,
ट्रेनें आती जा रही हैं
कभी इस ओर से,
कभी उस ओर से,
रुक रही हैं ठीक मेरे सामने।
चढ़ रहे हैं यात्री
अपनी-अपनी ट्रेनों में
पहुँच ही जाएंगे गंतव्य तक,
पुराने यात्रियों की जगह
आ गए हैं अब नए यात्री,
पर मैं वहीं खड़ा हूँ, जहां था।
कब तक करूंगा इंतज़ार,
कब तक रहूँगा दुविधा में,
अब चढ़ ही जाता हूँ
किसी-न-किसी ट्रेन में,
चढ़ूँगा, तभी तो पहुंचूंगा
कहीं-न-कहीं, कभी-न-कभी।
सही
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 03 जुलाई 2025 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंसुन्दर
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