एक पंछी उड़ते हुए आया,
मेरी खिड़की पर बैठा,
पूछा,'पिंजरे में कैसा लगता है?'
मैंने कोई जवाब नहीं दिया,
उसने हँसते हुए पूछा,
'दाना-पानी है न?'
और फुर्र से उड़ गया.
***
उड़े जा रहे हैं
कुछ पंछी आकाश में
आपस में बतियाते
कि बहुत शांति है आज,
सब बंद हैं घरों में,
ये जब बाहर होते हैं,
तो कितना शोर मचाते हैं!
***
एक पंछी नाच रहा है सड़क पर,
कह रहा है लोगों से,
अब पिंजरे में रहने के
तुम्हारे दिन आए,
हम आज़ाद हैं,
तुम्हारी बनाई सड़कों पर
तुम्हारी अनुमति के बिना
थोड़ा हम भी फुदकेंगे.
बहुत खूब ...
जवाब देंहटाएं:) सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और उपयोगी रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर कविता के माध्यम से आज के परिवेश को बयां कर दिया आपने लॉक टाउन के 21 दिन जल्द ही पूरे होंगे और आप और हम सभी इस पिंजरे से आजाद होंगे कुछ दिन प्रशासन का सहयोग कीजिए
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल गुरुवार (02-04-2020) को "पूरी दुनिया में कोरोना" (चर्चा अंक - 3659) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
मित्रों!
कुछ वर्षों से ब्लॉगों का संक्रमणकाल चल रहा है। आप अन्य सामाजिक साइटों के अतिरिक्त दिल खोलकर दूसरों के ब्लॉगों पर भी अपनी टिप्पणी दीजिए। जिससे कि ब्लॉगों को जीवित रखा जा सके। चर्चा मंच का उद्देश्य उन ब्लॉगों को भी महत्व देना है जो टिप्पणियों के लिए तरसते रहते हैं क्योंकि उनका प्रसारण कहीं भी नहीं हो रहा है। ऐसे में चर्चा मंच विगत दस वर्षों से अपने धर्म को निभा रहा है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
पंछियों के माध्यम से गहरी बात कह दी ...
जवाब देंहटाएंकाश आदमी समझ सके ...
'दाना-पानीहै न'.....वाह, बहुत सुंदर ।
जवाब देंहटाएंगज़ब ...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब । अति सुन्दर ।
जवाब देंहटाएं