अरसे बाद सब घर में हैं,
मुस्कराती रहती है माँ,
सबको लगता है,
बिल्कुल ठीक है वह,
सबको लगता है,
बीमार नहीं है माँ,
अभी कुछ नहीं होगा माँ को.
**
चल-फिर नहीं सकती थी माँ,
बिस्तर में ही रहती थी,
अब सब घर में हैं,
तो थोड़ा चलने लगी है वह,
सब हैरत में हैं
कि बिना घुटना बदलवाए
कैसे ठीक होने लगी है माँ?
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 03 एप्रिल 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण सर ,माँ को असली दवा मिल रही हैं इस वक़्त ,सादर नमन आपको
जवाब देंहटाएंबहुत ही भावपूर्ण सृजन
जवाब देंहटाएंसबको खुश देख माँ अपने दुख भूल जाती है।
वह माँ है न ...
जवाब देंहटाएंहृदयस्पर्शी रचना
माँ सबको साथ देखकर खुश होती है, यही खुशी दवा बन जाती है।
जवाब देंहटाएंसबका साथ पाकर खुश है माँ ...।
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण व मर्मस्पर्शी ..माँ को ऊर्जा मिल रही है अपनों के सानिध्य की ।
जवाब देंहटाएंअपनों का साथ ही तो चाहिए बुजुर्गों को. भावपूर्ण रचना, बधाई.
जवाब देंहटाएंउम्दा लिखावट ऐसी लाइने बहुत कम पढने के लिए मिलती है धन्यवाद् Aadharseloan (आप सभी के लिए बेहतरीन आर्टिकल संग्रह जिसकी मदद से ले सकते है आप घर बैठे लोन) Aadharseloan
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