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गुरुवार, 2 अप्रैल 2020

४१७. माँ

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अरसे बाद सब घर में हैं,
मुस्कराती रहती है माँ,
सबको लगता है,
बिल्कुल ठीक है वह,
सबको लगता है,
बीमार नहीं है माँ,
अभी कुछ नहीं होगा माँ को.

**

चल-फिर नहीं सकती थी माँ,
बिस्तर में ही रहती थी,
अब सब घर में हैं,
तो थोड़ा चलने लगी है वह,
सब हैरत में हैं
कि बिना घुटना बदलवाए
कैसे ठीक होने लगी है माँ?

9 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 03 एप्रिल 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. भावपूर्ण सर ,माँ को असली दवा मिल रही हैं इस वक़्त ,सादर नमन आपको

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  3. बहुत ही भावपूर्ण सृजन
    सबको खुश देख माँ अपने दुख भूल जाती है।

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  4. वह माँ है न ...
    हृदयस्पर्शी रचना

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  5. माँ सबको साथ देखकर खुश होती है, यही खुशी दवा बन जाती है।

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  6. सबका साथ पाकर खुश है माँ ...।

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  7. भावपूर्ण व मर्मस्पर्शी ..माँ को ऊर्जा मिल रही है अपनों के सानिध्य की ।

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  8. अपनों का साथ ही तो चाहिए बुजुर्गों को. भावपूर्ण रचना, बधाई.

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