न मेरे पास दिया है,
न तेल, न बाती,
दिवाली की बची
कोई मोमबत्ती भी नहीं है,
न ही कोई फ़्लैश लाइट है
मेरे पुराने मोबाइल में.
फिर भी मैं खड़ा हो जाऊंगा
घर की देहरी पर,
फैला दूंगा हथेलियाँ,
आ बैठेगा उनमें
कोई-न-कोई जुगनू
जब बंद हो जाएंगे बल्ब,
जब नहीं जल रही होगी
कहीं कोई ट्यूबलाइट.
न तेल, न बाती,
दिवाली की बची
कोई मोमबत्ती भी नहीं है,
न ही कोई फ़्लैश लाइट है
मेरे पुराने मोबाइल में.
फिर भी मैं खड़ा हो जाऊंगा
घर की देहरी पर,
फैला दूंगा हथेलियाँ,
आ बैठेगा उनमें
कोई-न-कोई जुगनू
जब बंद हो जाएंगे बल्ब,
जब नहीं जल रही होगी
कहीं कोई ट्यूबलाइट.
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 05 एप्रिल 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंघर की देहरी पर,
जवाब देंहटाएंफैला दूंगा हथेलियाँ,
आ बैठेगा उनमें
कोई-न-कोई जुगनू
जब बंद हो जाएंगे बल्ब,
जब नहीं जल रही होगी
कहीं कोई ट्यूबलाइट.
अद्भुत शब्द चित्र ..बहुत सुन्दर सृजन ।
सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (06 -04-2020) को 'इन दिनों सपने नहीं आते'(चर्चा अंक-3663) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
*****
रवीन्द्र सिंह यादव
निराशा से आशा की ओर देखती रचना. बहुत सुन्दर.
जवाब देंहटाएंसुंदर सृजन ओंकार जी ,ना तेल ,ना मोमबती ,पर मन में मानवता का दीपक जलाकर देशवासियों के साथ प्रार्थना तो कर ही सकते थे न। उम्मींदों से भरा सृजन ,सादर नमन
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुंदर भाव..विषम परिस्थितियों में सामर्थ्य अनुरूप व्यवहार की आशा ही मनुष्यता है।
जवाब देंहटाएंसादर
वाह !बहुत ही सुंदर सृजन आदरणीय सर
जवाब देंहटाएंसादर
वाह बहुत ही लाजवाब
जवाब देंहटाएं👏👏👏
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण और प्रभावी रचना
जवाब देंहटाएंवाह
वाह ॐकारजी! अद्भुत!!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा लिखावट , बहुत ही सुंदर और सटीक तरह से जानकारी दी है आपने ,उम्मीद है आगे भी इसी तरह से बेहतरीन article मिलते रहेंगे Best Whatsapp status 2020 (आप सभी के लिए बेहतरीन शायरी और Whatsapp स्टेटस संग्रह) Janvi Pathak
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