बहुत दिनों तक कोई मेहमान
मेरे घर नहीं आता,
तो मैं इंतज़ार करता हूँ
किसी कौए की काँव-काँव का.
कहते हैं,जब कोई कौआ
घर की मुंडेर पर बैठकर
काँव-काँव करता है,
तो कोई आने वाला होता है.
लम्बे इंतज़ार के बाद
जब भी कोई कौआ
मेरे घर की मुंडेर पर आकर
काँव-काँव करने लगता है,
तो मैं बहुत ख़ुश हो जाता हूँ,
उसकी काँव-काँव के आगे
कोयल की कूक भी मुझे
फ़ीकी लगने लगती है.
एकांतवासी की मनोदशा का हृदय स्पर्शी शब्द चित्र । अति सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर कौआ अब कहां दिखाई देता है ?
जवाब देंहटाएंक्या वाक़ई कोई आता भी है या केवल कांव कांव ही सुनने को मिलती है
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंवाह क्या बात कही है सर सच में कुछ ऐसा ही लगता है! बहुत ही सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर! सच मन की पिपासा मन ही समझता है,कोयल से मधुर कितनी बार कौवे की काँव काँव लगती है।
जवाब देंहटाएंअद्भुत।
धीरे-धीरे कौए और मेहमान गायब होते जा रहे हैं, फिर भी रिश्तों की डोर से बंधे हमें इंतजार करना अच्छा लगता है
जवाब देंहटाएंवाह ओंकार जी !
जवाब देंहटाएंमाता कौशल्या की तरह आपको भी क्या किसी श्री राम के आने की आस है?
'बैठी सगुन मनावत माता,
कब अइहैं मोरे बाल कुसल घर, कहहु काग पुर बासा !
कहीं मेहमान का इस तरह इंतजार कि कौवे की काँव काँव से खुशी मिल जाती है तो कहीं मेहमानदारी निभाने से कतराते है ..
जवाब देंहटाएंवाह!!!
बहुत बढ़िया ओंकार बीवीजी। किसी का पास होना ही बहुत बड़ा सौभाग्य है आजाकल्त कोयल न सही कौआ ही सही।
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