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शुक्रवार, 26 नवंबर 2021

६२३. ब्रह्मपुत्र को सुनो

 



सुनो,

किसी शाम एक नाव लेते हैं, 

ब्रह्मपुत्र में निकलते हैं,

लहरें जिधर ले जायँ,

उधर चलते हैं.


इतनी दूर निकल लेते हैं 

कि गौहाटी शहर की बत्तियां 

ओझल हो जायँ नज़रों से. 


जब कुछ भी न दिखे,

पानी भी नहीं, 

तो बंद कर दें चप्पू चलाना,

कानों में पड़ने दें 

बहते पानी की आवाज़. 


बहुत दिनों से हमने सुना नहीं है 

कि ब्रह्मपुत्र कहना क्या चाहता है. 


11 टिप्‍पणियां:

  1. bahut, bahut sundar!! Aapki sabhi kavitaayein bahut sahaj, bahut sundar hoti hain!

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  2. जब कुछ भी न दिखे,

    पानी भी नहीं,

    तो बंद कर दें चप्पू चलाना,

    कानों में पड़ने दें

    बहते पानी की आवाज़. .. वाह ! गहरा अवलोकन । मन में उतरती सुंदर कृति ।

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  3. ओहो...बहुत ही शानदार रचना है... खूब बधाई

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  4. ब्रह्मपुत्र का कलेवर गौहाटी में प्रवेश के साथ पुल...नदी में तैरती नावें ..., सब कुछ साकार हो गया आँखों के आगे । अत्यंत सुंदर शब्द चित्र ।

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  5. सुंदर सृजन!! सचमुच ही ब्रह्मपुत्र को जिसने सुन लिया वह अस्तित्त्व से उसी क्षण जुड़ गया

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  6. जब कुछ भी न दिखे,
    पानी भी नहीं,
    तो बंद कर दें चप्पू चलाना,
    कानों में पड़ने दें
    बहते पानी की आवाज़.
    बहुत दिनों से हमने सुना नहीं है
    कि ब्रह्मपुत्र कहना क्या चाहता है.
    बहुत ही गहन रचना!

    जवाब देंहटाएं
  7. गोहाटी एवं ब्रह्मपुत्र देखने की कोशिश कर रही हूँ रचना में....
    बेहतरीन शब्दचित्रण
    वाह!!!

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  8. सच में, वही सुनें ,अनंत से आती ध्वनि ,अनंत में बहाकर ले जाने वाली लहरों पर बैठ। सुंदर भाव।

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  9. जब कुछ भी न दिखे,

    पानी भी नहीं,

    तो बंद कर दें चप्पू चलाना,

    कानों में पड़ने दें

    बहते पानी की आवाज़.


    बहुत दिनों से हमने सुना नहीं है

    कि ब्रह्मपुत्र कहना क्या चाहता है... सच कहा आदरणीय सर बहुत कुछ कहना चाहती है ब्रह्मपुत्र.. लाज़वाब सृजन।

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