उस पुरानी दीवार में
एक पीपल का पौधा उगा,
मैंने उसे जतन से निकाला,
गड्ढा खोदकर ज़मीन में लगाया,
उसे खाद-पानी दिया,
उसकी हिफ़ाज़त की,
पर वह मुरझा गया.
पीपल का वह पौधा
शायद इसी लिए पैदा हुआ था
कि उस पुरानी दीवार को गिरा दे,
जीवन में कुछ और करना
उसे मंज़ूर ही नहीं था.
सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंशायद नियति को यही मंजूर था
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार
(7-11-21) को भइयादूज का तिलक" (चर्चा अंक 4240) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
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कामिनी सिन्हा
वाह बहुत ही उम्दा!
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंहर छोटी छोटी घटना पर विहंगम दृष्टि पात।
जवाब देंहटाएंगहन भाव सृजन।
जीवन के हर संदर्भ पर तीक्ष्ण दृष्टि और उसका सुंदर सामयिक संयोजन ।
जवाब देंहटाएंसुंदर सृजन,दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ ।
जवाब देंहटाएंपीपल का वह पौधा
जवाब देंहटाएंशायद इसी लिए पैदा हुआ था
कि उस पुरानी दीवार को गिरा दे,
जीवन में कुछ और करना
उसे मंज़ूर ही नहीं था.
वाह वाह ! कवि दृष्टि की सीमा का कोई छोर नहीं 👌👌🙏🙏