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शनिवार, 18 नवंबर 2023

७४३. शोर

 


बहुत शोर है मेरे अंदर, पर कुछ सुनता ही नहीं,

मुझे तो शक़ है, कहीं मैं बहरा तो नहीं. 


बहुत सहा है उसने, पर कहता कुछ नहीं, 

उसके अंदर दबा शोर कहीं गहरा तो नहीं. 


बह रहा है पानी, तो शोर क्यों नहीं है,

नदी जिसे समझा था, सहरा तो नहीं. 


जो शोर कर रहा था, अब चुपचाप क्यों है,

उससे पूछो, उसका ज़मीर कहीं ठहरा तो नहीं. 


अगर बच्चा है वह, तो ख़ामोश क्यों है,

उसके शोर पर किसी का पहरा तो नहीं. 


4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" सोमवार 20 नवम्बर 2023 को लिंक की जाएगी ....  http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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  2. बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति ।

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  3. वाक़ई शोर और सुनने का गहरा संबंध है, भीतर शोर हो तो बाहर का सुनायी नहीं देता, बाहर शोर हो तो भीतर का सुनायी नहीं देता, दोनों में संतुलन ही साधना है

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