मेरे पड़ोसी की ड्योढ़ी पर
दीया रख गया कोई,
फैल गया उसकी लौ से
उजाला मेरे दरवाज़े तक.
अच्छा नहीं लगा मुझे
थोड़ा ज़्यादा उजाला
पड़ोसी की ड्योढ़ी पर,
जिसने भी दीया रखा,
क्यों नहीं रखा उसने
मेरी ड्योढ़ी पर?
मैंने बुझा दिया दीया,
अब दोनों जगह अँधेरा था,
मैं ख़ुश था
कि अँधेरा न कहीं ज़्यादा था,
न कहीं कम,
वह दोनों जगह बराबर था.
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" बुधवार 15 नवम्बर 2023 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंवाह | शुभकामनाएं दीप पर्व की |
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबराबरी का यह तरीक़ा तो बड़ा ही ख़तरनाक है
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