गाँव से निकलते ही वह पेड़ है,
जहाँ वह लटक गई थी
या लटका दी गई थी,
उसके गले में वही चुन्नी थी,
जिसे ओढ़कर वह घूमा करती थी,
एक ही कमी थी उसमें
कि वह सुन्दर बहुत थी.
कोई नहीं जाता अब उस ओर,
कहते हैं, भूत नहीं दिखता उसका,
वह ख़ुद दिखती है लटकी हुई
और दिखता है उसका दुपट्टा.
मैं भी नहीं जाता कभी उस ओर,
पर मुझ तक आ जाता है वह पेड़,
वह डाली, वह लड़की, वह दुपट्टा
मैं इन दिनों भूत-सा दिखता हूँ.
गहरा एहसास ... बहुत देर तक रहने वाली है मन के किसी कोने में ये रचना ...
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" सोमवार 18 दिसम्बर 2023 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंमार्मिक रचना !!
जवाब देंहटाएंभूत सा दिखना शायद कवि की नियति है
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों में उतरती मार्मिक रचना।
जवाब देंहटाएंउसकी सुंदरता उसकी कमी हो गई, यह एक लाइन कितने सवाल खड़ा करती..
सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंएक ही कमी थी उसमें
जवाब देंहटाएंकि वह सुन्दर बहुत थी.
दिल में फ़ांस सी चुभ गई यह पंक्ति,गभीर प्रश्न उठाती हृदयस्पर्शी सृजन आदरणीय,सादर नमन
अत्यंत मार्मिक अभिव्यक्ति । सुंदर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंOh baap re!!! saans ruk gayi kavita padhte padhte.
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