नया रिश्ता ऑर्डर करो,
तो ध्यान से करना,
अच्छी तरह ठोक-बजाकर
सोच-समझकर करना।
मार्केटिंग से सावधान रहना,
पैकिंग पर मत जाना,
थोड़ा भी शक़ हो,
तो मत लेना डिलिवरी।
यह कोई पिज़्ज़ा नहीं है
कि खा लिया और हो गया,
कोई ए. सी. नहीं है
कि चला, तो चला,
नहीं चला, तो नहीं चला।
तुम्हें पता भी नहीं चलेगा,
कि कब धीरे-धीरे
तुम्हारी ज़िंदगी का
हिस्सा बन जाएगा रिश्ता।
बहुत तकलीफ़ होगी,
जब आएंगी इसमें दरारें,
साबुत नहीं बचोगे तुम भी,
अगर यह टूटा कभी।
ऐसे ही होते हैं रिश्ते,
पकड़ लेते हैं कसकर,
नहीं मिलता इनसे
आसानी से छुटकारा,
नहीं होती रिश्तों की
कोई लाइफ़लॉन्ग वारंटी।

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