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शनिवार, 3 मार्च 2018

३०१. आमंत्रण


आओ, बना लो घोंसले कहीं भी,
किसी भी डाल पर,
किसी भी कोने में,
जहाँ भी तुम्हें जगह मिले.

मत सोचो कि कैसे बनेंगे 
इतने घोंसले मुझ पर,
ज़रा कमज़ोर दिखता हूँ,
पर गिरूँगा नहीं,
मरूंगा नहीं,
कितने ही घोंसले क्यों न बन जायँ मुझ पर.

क्या फ़ायदा मेरी डालियों का,
मेरे पत्तों का,
अगर तुम्हारे बसेरे न हों उनमें?
इसलिए कहता हूँ,
स्वागत है तुम्हारा,
अपने कलरव से भर दो मेरी ज़िन्दगी,
घोंसले बना लो मुझमें.

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (06-03-2017) को "5 मार्च-मेरे पौत्र का जन्मदिवस" (चर्चा अंक-2901) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. पेड़ तो सदा तत्पर रहते हैं मदद को ...
    भावपूर्ण रचना ...

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