मज़बूत औरतों,
ज़रा संभल के रहना,
कमज़ोर औरतों से
अब वे ऊब चुके हैं.
उनके पुरुषत्व ने उन्हें
नई चुनौती दी है,
अब उन्हें काबू करना है
उन औरतों को,
जो कमज़ोर औरतों के लिए
आवाज़ उठाती हैं.
उन्हें साबित करना है
कि वे मज़बूत औरतों को
कमज़ोर बना सकते हैं.
मज़बूत औरतों,
तुम्हें बस इतना करना है
कि मज़बूत बने रहना है
और कमज़ोर औरतों को
अपने जैसा बनाना है.
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 21 दिसम्बर 2019 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंप्रेरक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(२२-१२ -२०१९ ) को "मेहमान कुछ दिन का ये साल है"(चर्चा अंक-३५५७) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
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अनीता सैनी
वाह क्या खूब लिखा सर।
जवाब देंहटाएंसादर।
वाह!!!!बहुत प्रेरक आहवान ओंकार जी । मजबूत औरतों के लिए चुनौतियाँ कभी कम नहीं रही, पर आज समय बदलने से ये और
जवाब देंहटाएंभी विकृत रूप में सामने आ रही हैं। सादर
वाह! बहुत प्रेरक आहवान औरतों से। यूँ तो कथित मजबूत औरतों ने हमेशा ही सब चुनौतियों का साहस से मुकाबला किया है पर आज के समय में ये और भी विकृत रूप में सामने आ रही हैं। सादर
जवाब देंहटाएंकाम बहुत मुश्किल है लेकिन नामुमकिन नहीं है. 'लगी रहो, मज़बूत बहन !
जवाब देंहटाएंप्रेरक अभिव्यक्ति ,सादर नमन
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