मुझे लगता है
कि जब मैं घर पर नहीं होता,
मेरे घर की दीवारें
आपस में ख़ूब बातें करती हैं.
खिड़कियाँ,रोशनदान,
सब शामिल हो जाते हैं गप्पों में,
दरवाज़े भी हँसने लगते हैं.
मैं जब घर पर रहता हूँ,
तो सब चुप रहते हैं,
उतरे हुए होते हैं उनके चेहरे,
सब मेरे जाने का इंतज़ार करते हैं.
मुझे अच्छा नहीं लगता,
उन्हें दुखी देखना,
अक्सर मैं सोचता हूँ
कि अबकी बार निकलूँ ,
तो वापस घर न लौटूं.
वाह, बहुत खूब
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (30-12-2019) को 'ढीठ बन नागफनी जी उठी!' चर्चा अंक 3565 पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं…
*****
रवीन्द्र सिंह यादव
लाजवाब ।
जवाब देंहटाएंदर्द बयां करती रचना ..
जवाब देंहटाएंबेहद उम्दा
जवाब देंहटाएंVery nice poem thanks for sharing
जवाब देंहटाएंउम्दा लिखावट ऐसी लाइने बहुत कम पढने के लिए मिलती है धन्यवाद् Aadharseloan (आप सभी के लिए बेहतरीन आर्टिकल संग्रह जिसकी मदद से ले सकते है आप घर बैठे लोन) Aadharseloan
जवाब देंहटाएंhttps://keedabankingnews.com/rapidrupee-se-loan-kaise-le/
जवाब देंहटाएंVERRY NICE POS AND BLIG https://keedabankingnews.com/rapidrupee-se-loan-kaise-le/
जवाब देंहटाएं