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शुक्रवार, 12 अप्रैल 2019

३५४.न्याय


अगर सूरज हो,
तो बाहर आओ,
बादलों में दुबके रहोगे,
तो कोई नहीं पूछेगा तुम्हें.

पहाड़ों के पीछे से,
समुद्र के पार से,
जहाँ से भी निकल सको,
अपने पूरे सौंदर्य में निकलो.

कुंकुम बिखेर दो
धरती के कण-कण पर,
दूर भगा दो अँधेरा,
जान डाल दो 
ठिठुरी हुई हड्डियों में.

फिर भी अगर होने लगे 
तुम्हारी उपेक्षा,
तो टेढ़ी करो ऊँगली,
सिर पर चढ़ जाओ,
आग बरसाओ. 

फिर देखना,
कैसे होता है तुम्हारे साथ न्याय,
कैसे मिलती है तुम्हें वह जगह,
जिसके तुम हक़दार हो. 

7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही शानदार सच आह्वान ने जो क्रांति को समर्थ हैं वो सूरज के समान सामने आओ बादलों में छुप कर उजाले का भ्रम क्यों..
    बेहतरीन दमदार

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  2. सूर्य के सौन्दर्य और शक्ति पर सुन्दर सृजन ।

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  3. बहुत सुन्दर सटीक एवं सार्थक अभिव्यक्ति...
    बादलों की ओट से बाहर आकर अपना अस्तित्व स्वयं बनाता सूर्य ....बहुत सुन्दर सीख देती रचना

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