घर की बालकनी से मैं
सूरज को ताकता हूँ,
सूरज मुस्कराता है,
पूछ्ता है,'उठ गए ?
मैं भी उठ गया.'
लाल गुलाल सी किरणें
मेरे चेहरे पर
मल देता है सूरज.
मैं कमरे में लौटता हूँ,
आईने में देखता हूँ,
चेहरा तो साफ़ है,
पर महसूस करता हूँ
कि रंग दिया है सूरज ने
कहीं गहरे तक मुझे.
प्रकृति जो भी रंग लगाए वो कम है साहब...हम हैं कि बेरंग होने पर तुले रहते हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत ही लाजवाब ।
मेरी नई पोस्ट पर स्वागत है👉👉 जागृत आँख
.. वाह बेहद खूबसूरत पंक्तियां रंग दिया है सूरज ने मुझे कहीं गहरे तक बहुत ही अच्छा लिखा आपने मन को भा गई आपकी यह रचना
जवाब देंहटाएंवाह बहुत खूब सुंदर एहसास ।
जवाब देंहटाएंतृप्त भावों का चित्रण।
दिन की लाली वाही तो लाता है और पोत देता है ताजगी ...
जवाब देंहटाएंलाजवाब रचना ...