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मंगलवार, 30 जून 2020

४५२. मौत से

हज़ारों मील के सफ़र का 
एक बड़ा हिस्सा 
तय कर लिया है मैंने.

बदन थक कर चूर है,
पाँव छालों से भरे हैं,
पेट अकड़ रहा है भूख से,
पर अभी दूर है गाँव.

मैं चलता रहूँगा,
जब तक सांस चलेगी,
मौत, तुम्हें उसकी कसम,
जो तुम्हें सबसे प्रिय है,
मेरे गाँव पहुँचने से पहले 
मेरे पास मत आना.

5 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 01 जुलाई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. बड़ा जीवट होता है इन धरतीपुत्रों में ।
    मार्मिक अभिव्यक्ति

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  3. मौत, तुम्हें उसकी कसम,
    जो तुम्हें सबसे प्रिय है,
    मेरे गाँव पहुँचने से पहले
    मेरे पास मत आना.
    मन को दहला दिया था आपनी इन पंक्तियों ने ओंकार जी ! निशब्द हूँ | इस रचना पर लिखने के लिए कब से आतुर थी पर समय की अनुमति आज मिली | क्षणा प्रार्थी हूँ | मार्मिक रचना जो मुझे भूली नहीं |

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