विचारों,
घुस आओ अन्दर,
मैं कब से इंतज़ार में हूँ,
इतनी फ़ुर्सत में हूँ
कि तुम्हारा स्वागत कर सकूँ,
देख सकूँ कि तुममें से
किसे बोया जा सकता है,
सींचा जा सकता है,
बनाया जा सकता है
एक हरा-भरा दरख़्त.
विचारों,
हिचको मत,
अन्दर आ जाओ,
जो लक्ष्मण-रेखा मैंने
घर के बाहर खींची है,
वह तुम्हारे लिए नहीं है.
सादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (05-06-2020) को
"मधुर पर्यावरण जिसने, बनाया और निखारा है," (चर्चा अंक-3723) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है ।
…
"मीना भारद्वाज"
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 04 जून 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा, आपका विचारों को आमन्त्रण देना।
जवाब देंहटाएंवाह!
जवाब देंहटाएंसुंदर दऱ़ख्त़ दिख रहा है ।
जवाब देंहटाएंविचारों,
जवाब देंहटाएंहिचको मत,
अन्दर आ जाओ,
जो लक्ष्मण-रेखा मैंने
घर के बाहर खींची है,
वह तुम्हारे लिए नहीं है.
बहुत ही सुंदर रचना
बेहतरीन भाव।
जवाब देंहटाएंअच्छा विचार अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंबेहतरीन सृजन.
जवाब देंहटाएंसादर
विचारों,
जवाब देंहटाएंहिचको मत,
अन्दर आ जाओ,
जो लक्ष्मण-रेखा मैंने
घर के बाहर खींची है,
वह तुम्हारे लिए नहीं है.
विचारों से इस प्रकार बातें करना, बहुत ही खूब है
💐💐💐
क्या बात है , इस अवधि में विचारशून्यता का अनुभव भी हुआ है ऐसे में इसतरह की रचना निकलना बहुत ही ईमानदार अभिव्यक्ति है .
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