एक परिंदा डरते-डरते
मेरी खिड़की पर आया,
फिर उड़ गया,
अगले दिन फिर आया,
एक पैर खिड़की के अन्दर रखा,
फिर उड़ गया.
थोड़े दिनों में वह
घर के अन्दर घुस आया,
आस-पास बैठने लगा,
साथ बैठकर खाना खाने लगा.
मैंने पूछा,'डर नहीं लगता तुम्हें?'
उसने कहा,'लगता है,पर क्या करें?
तुम लोग बाहर कम निकलते हो,
तुम्हारे बिना हमारा मन नहीं लगता.'
एक दूजे से बंधे जीवों में आत्मीय बोध प्रगाढ़ होता है
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति
परिंदे इन्सान हो गये हैं।
जवाब देंहटाएंतुम लोग बाहर कम निकलते हो,
जवाब देंहटाएंतुम्हारे बिना हमारा मन नहीं लगता..
अत्यन्त सुन्दर भावाभिव्यक्ति ।
वाह! अद्भुत रागात्मक बिम्ब!
जवाब देंहटाएंपरिंदे तो मनुष्य के बाहर ना निकलने से खुश होते होंगे। परंतु कुछ परिंदों को सच में मनुष्य के साथ साथ जीने की आदत सी हो जाती है जैसे गौरेया। सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंसुंदर भावाभिव्यक्ति👌👌👌
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंachha blog hai. I have read some post and great kavita's by different people. hindi me kahaniya
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