सड़कें सूनी हैं,
पक्षी ख़ामोश हैं,
हवाएँ लौट रही हैं
बंद दरवाज़ों से टकराकर.
सूरज उगता है,
मारा-मारा फिरता है
सुबह से शाम तक,
फिर डूब जाता है.
मुँह पर पट्टी बंधी है,
पहले की तरह बोलना
अब संभव नहीं,
किसी को गले लगाना
ख़तरे से ख़ाली नहीं.
अब हर आदमी
शक के घेरे में है,
अब हर चीज़ से
डर लगता है.
कोरोना ने बदल दी है
हम सब की दुनिया,
जी चाहता है लौट जाएँ
अब उसी पुरानी
बेतरतीब दुनिया में.
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 13 जून जून 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसचमुच कोरोना ने दुनिया बदल दी है । और चिन्ताएं बढ़ा दी हैं...सबके मन की बात कहती है आपकी कविता ।
जवाब देंहटाएंहकीकत से भरी है आपकी रचना।
जवाब देंहटाएंएक डरावनी हकीकत....जिसे कल शायद एक दुःस्वप्न समझ कर भूलना चाहेंगे, पर भूल ना पाएंगे।
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंवाह !लाजवाब सृजन आदरणीय सर .
जवाब देंहटाएंवाह वाकई दिल छू जाने वाली कविता ,बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंहिंदी में पढने वालो के लिए वाकई बेहतरीन ब्लॉग ! धन्यवाद सर जी
Appsguruji (आप सभी के लिए बेहतरीन आर्टिकल संग्रह) Navin Bhardwaj