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शुक्रवार, 12 जून 2020

४४६. पुरानी दुनिया

Coronavirus, Virus, Mask, Corona

सड़कें सूनी हैं,
पक्षी ख़ामोश हैं,
हवाएँ लौट रही हैं
बंद दरवाज़ों से टकराकर.

सूरज उगता है,
मारा-मारा फिरता है
सुबह से शाम तक,
फिर डूब जाता है.

मुँह पर पट्टी बंधी है,
पहले की तरह बोलना 
अब संभव नहीं,
किसी को गले लगाना 
ख़तरे से ख़ाली नहीं.

अब हर आदमी 
शक के घेरे में है,
अब हर चीज़ से 
डर लगता है.

कोरोना ने बदल दी है 
हम सब की दुनिया,
जी चाहता है लौट जाएँ
अब उसी पुरानी
बेतरतीब दुनिया में.

7 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 13 जून जून 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. सचमुच कोरोना ने दुनिया बदल दी है । और चिन्ताएं बढ़ा दी हैं...सबके मन की बात कहती है आपकी कविता ।

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  3. एक डरावनी हकीकत....जिसे कल शायद एक दुःस्वप्न समझ कर भूलना चाहेंगे, पर भूल ना पाएंगे।

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  4. वाह वाकई दिल छू जाने वाली कविता ,बहुत सुंदर

    हिंदी में पढने वालो के लिए वाकई बेहतरीन ब्लॉग ! धन्यवाद सर जी
    Appsguruji (आप सभी के लिए बेहतरीन आर्टिकल संग्रह) Navin Bhardwaj

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