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शुक्रवार, 31 जुलाई 2020

४६४. चाय और कविता

Black Coffee, Coffee, Cup, Desk, Drink

इन दिनों मुझसे 
रूठी हुई है मेरी कविता.

कभी वे भी दिन थे,
जब एक कप चाय पर 
मुकम्मल हो जाती थीं 
मेरी कई सारी कविताएँ.

अब लग जाता है मेज़ पर 
ख़ाली कपों का ढेर,
पर काग़ज़ है  
कि कोरा ही पड़ा रहता है.

शायद चाय पी-पीकर 
ऊब गई है मेरी कविता,
अब क्या पिलाऊँ उसे 
कि लौट आए मेरी कविता. 

9 टिप्‍पणियां:


  1. जय मां हाटेशवरी.......

    आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
    आप की इस रचना का लिंक भी......
    02/08/2020 रविवार को......
    पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
    शामिल किया गया है.....
    आप भी इस हलचल में. .....
    सादर आमंत्रित है......

    अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
    https://www.halchalwith5links.blogspot.com
    धन्यवाद

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    धन्यवाद

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  2. अच्छी कविता 💐 अंत की दो पंक्तियाँ अतिरिक्त लग रही हैं । मेरी बात अन्यथा मत लीजियेगा ।

    जवाब देंहटाएं
  3. शायद चाय पी-पीकर
    ऊब गई है मेरी कविता,
    अब क्या पिलाऊँ उसे
    कि लौट आए मेरी कविता.

    हा, हा, हा....😃

    कृपया अन्यथा न लें
    तो सुझाव दूं
    रम या बियर या As you wish 😄😄😄😄

    जवाब देंहटाएं
  4. होता है की बार लेखनी रूठी सी प्रतीत होती है और वो अवसाद के क्षण भी कुछ तो लिखवाही देते हैं।
    अच्छी कविता ।

    जवाब देंहटाएं
  5. कई बार ऐसा होता है ,जब भावनाएं आती तो हैं ,लेकिन कागज पर नहीं उतरतीं । ऐसे समय के अपने मनोभावों को आपने इस छोटी रचना में बेहतर ढंग से प्रस्तुत किया है। हार्दिक शुभेच्छाएँ ।

    जवाब देंहटाएं