इन दिनों मुझसे
रूठी हुई है मेरी कविता.
कभी वे भी दिन थे,
जब एक कप चाय पर
मुकम्मल हो जाती थीं
मेरी कई सारी कविताएँ.
अब लग जाता है मेज़ पर
ख़ाली कपों का ढेर,
पर काग़ज़ है
कि कोरा ही पड़ा रहता है.
शायद चाय पी-पीकर
ऊब गई है मेरी कविता,
अब क्या पिलाऊँ उसे
कि लौट आए मेरी कविता.
जवाब देंहटाएंजय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
02/08/2020 रविवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
https://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद
जय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
02/08/2020 रविवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
https://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद
वाह
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर!!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंअच्छी कविता 💐 अंत की दो पंक्तियाँ अतिरिक्त लग रही हैं । मेरी बात अन्यथा मत लीजियेगा ।
जवाब देंहटाएंशायद चाय पी-पीकर
जवाब देंहटाएंऊब गई है मेरी कविता,
अब क्या पिलाऊँ उसे
कि लौट आए मेरी कविता.
हा, हा, हा....😃
कृपया अन्यथा न लें
तो सुझाव दूं
रम या बियर या As you wish 😄😄😄😄
अच्छी कविता
जवाब देंहटाएंहोता है की बार लेखनी रूठी सी प्रतीत होती है और वो अवसाद के क्षण भी कुछ तो लिखवाही देते हैं।
जवाब देंहटाएंअच्छी कविता ।
कई बार ऐसा होता है ,जब भावनाएं आती तो हैं ,लेकिन कागज पर नहीं उतरतीं । ऐसे समय के अपने मनोभावों को आपने इस छोटी रचना में बेहतर ढंग से प्रस्तुत किया है। हार्दिक शुभेच्छाएँ ।
जवाब देंहटाएं