यह कहना सही नहीं है कि उसे मृत्युदंड मिला है, दंड अपराध के लिए होता है, उसका अपराध तो साबित ही नहीं हुआ, उसे मौक़ा ही नहीं मिला, तुमने दिया ही नहीं, तुमने कभी चाहा ही नहीं कि उसके साथ न्याय हो. सुनो, तुम जिसे मृत्युदंड कहते हो, वह दरअसल हत्या है.
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (15-07-2020) को "बदलेगा परिवेश" (चर्चा अंक-3763) पर भी होगी। -- हार्दिक शुभकामनाओं के साथ। सादर...! डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' --
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 14 जुलाई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (15-07-2020) को "बदलेगा परिवेश" (चर्चा अंक-3763) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
--
गहन चिंतन
जवाब देंहटाएंसार्थक सृजन 👌
जवाब देंहटाएंगंभीर चिन्तन व्यक्त करती रचना ।
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने,ये हत्या ही होती है जिसे झुठा कानुनी लबादा पहना कर मृत्यु दंड़ का नाम दिया जाता है।
जवाब देंहटाएंछोटे में गहन भाव ।
अप्रतिम।
सटीक
जवाब देंहटाएंएक नए चिंतन को जन्म देती रचना ...
जवाब देंहटाएं