बहुत प्यार करते थे
सारे बच्चे माँ से,
सबने ले लिए
धीरे-धीरे उसके गहने -
किसी ने कंगन,
किसी ने हार,
किसी ने पायल,
किसी ने झुमके.
अब गहने ख़त्म हुए,
सिर्फ़ माँ बची है,
बच्चों में ढूंढती फिरती है
वह पहले जैसा प्यार.
देर से समझ पाई है माँ
गहनों से प्यार का रिश्ता.
सटीक। जीवन का एक कड़ुवा पहलू ऐसा भी।
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 24 जुलाई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंदेर से समझ पाई है माँ
जवाब देंहटाएंगहनों से प्यार का रिश्ता.
कड़वी सच्चाई .. पता नहीं कब त्यागेंगे लोग गहनों का मोह . हृदयस्पर्शी सृजन .
सोचने पर विवश करती हुई मार्मिक रचना।
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार (२५-०७-२०२०) को 'सारे प्रश्न छलमय' (चर्चा अंक-३७७३) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
--
अनीता सैनी
जीवन सार हे आप की पंक्तियों में
जवाब देंहटाएंरिश्तों की असलियत बतलाती सुंदर प्रस्तूति।
जवाब देंहटाएंआज का कटु सत्य....
जवाब देंहटाएंमतलबी प्यार
बहुत सुन्दर सार्थक एवं लाजवाब सृजन
वाह!!!
सार्थक रचना
जवाब देंहटाएंहृदयस्पर्शी रचना
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी सत्य।
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