वह बगीचा वीरान था, न फूल थे वहां,न फल, डालियाँ सूख गई थीं, कलियाँ कुम्हला गई थीं, पौधे निर्जीव से खड़े थे. बस एक पत्ता था, जो अब भी हरा था, पूरी सृष्टि उसे सुखाने पर आमादा थी. वह अदना-सा पत्ता मृत्यु के सन्नाटे में जीवन का उद्घोष था.
सादर नमस्कार, आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (10-07-2020) को "बातें–हँसी में धुली हुईं" (चर्चा अंक-3758) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है । … "मीना भारद्वाज"
आ ओंकार जी, आपने एक पत्ते के संघर्ष से सार्थक सन्देश दिया है | ये पंक्तियाँ बहुत : बस एक पत्ता था, जो अब भी हरा था, पूरी सृष्टि उसे सुखाने पर आमादा थी.-- ब्रजेन्द्र नाथ
सादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार
(10-07-2020) को
"बातें–हँसी में धुली हुईं" (चर्चा अंक-3758) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है ।
…
"मीना भारद्वाज"
आशा का संचार करती सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंजीवन के उद्धोष के लिए एक पत्ते का संघर्ष प्रेरक है।
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना सर।
सादर।
सकारत्मक ऊर्जा का संचार करती रचना
जवाब देंहटाएंआ ओंकार जी, आपने एक पत्ते के संघर्ष से सार्थक सन्देश दिया है | ये पंक्तियाँ बहुत :
जवाब देंहटाएंबस एक पत्ता था,
जो अब भी हरा था,
पूरी सृष्टि उसे
सुखाने पर आमादा थी.-- ब्रजेन्द्र नाथ
वाह , जीवन का सुन्दर उद्घोष .
जवाब देंहटाएंवाह!जीवन दर्शन ...
जवाब देंहटाएंएक पत्ते का उद्धोष.
सादर
जीवन दर्शन करता सुंदर सृजन,सादर नमन आपको
जवाब देंहटाएंदोहा – बुद्धि हीन तनु जानि के सुमिरौं पवन कुमार।
जवाब देंहटाएंबल बुद्धि विद्या देहु मोहि, हरहु कलेश बिकार।।
बहुत खूब ओंकार जी | नाउ उम्मीदी में एक छोटी सी आशा की किरण है ये एकमात्र हरा पता | वाह ! कितनी सरलता से बहुत बड़ी बात कह दी आपने | शानदार !
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