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शनिवार, 25 जुलाई 2020

४६२. अनदेखा

Rays, Sun, Light, Fog, Forest, Sky

किसी रोज़ समय मिले,
तो अपने अन्दर भी झांक लो,
बहुत कुछ दिखेगा वहां,
जो तुम्हें पता ही नहीं था 
कि तुम्हारे अन्दर छिपा है.

कितनी  अजीब बात है 
कि हम दूर-दूर जाते हैं,
देख लेते हैं सब कुछ,
पर उसे नहीं देख पाते,
जो हमारे सबसे क़रीब है.

9 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 26 जुलाई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. सत्य लिखा है ... मन के करीब को तो हम कुछ समझते ही नहीं हैं न ...

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  3. बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति ...स्वयं का ज्ञान ही पूर्णता दर्शाता है।

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  4. बहुत ही सुंदर और सार्थक रचना ।

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  5. दिल को छू लेने वाले भावों से परिपूर्ण छोटी लेकिन गहरे अर्थों वाली कविता । हार्दिक बधाई ।

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  6. ये तो गूढ़़रहस्य ही बना रहा है आज तक क‍ि हम उसे ही नहीं देख पाते,
    जो हमारे सबसे क़रीब है तभी तो कस्तूरी मृग की सी स्थ‍ित‍ि में जीते रहते हैं। बहुत खूब ल‍िखा

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