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सोमवार, 20 जुलाई 2020

४६०. यात्रा

कौन थे वे,
जो सिर पर घर लादे 
चले जा रहे थे 
अपने घरों की ओर?

छालों भरे पांव,
भूख से अकड़े पेट -
न जाने कहाँ से चलकर 
आए थे वे,
न जाने कहाँ तक चलकर 
जाना था उन्हें?

कौन थे वे,
जिनकी उंगलियाँ थामे
चले जा रहे थे बच्चे,
जिनकी औरतें 
भारी पाँवों के साथ 
बढ़ी जा रही थीं 
मंज़िल की ओर.

कोरोना के डर से बेख़बर,
हिदायतों को दरकिनार कर 
लाठी,डंडे,गालियां खाकर, 
कभी खुलकर,कभी छिपकर 
बढ़े चले जा रहे थे वे.

यक़ीन नहीं होता था उन्हें देखकर 
कि मौत से सब डरते हैं. 

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