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रविवार, 7 जून 2020

४४४. बदहवास युग

Scrabble, Words, Wood, Wooden, Lockdown

धडकनें बढ़ रही हैं,
मन परेशान है,
क्या शुरू होने वाला है 
पहले सा पागलपन,
भागना बेमतलब 
इधर से उधर?

क्या ख़ाली सड़कों से 
उड़ जाएंगी चिड़ियाँ,
क्या उनकी जगह ले लेंगे 
रेंगते वाहन, घिसटते पांव?

क्या यूँ ही उगेगा सूरज,
यूँ ही डूब जाएगा,
क्या यूँ ही खिलेंगे फूल 
और यूँ ही मुरझा जाएंगे?

क्या लौट जाएंगे हम फिर से 
उसी बदहवास युग में,
क्या कुछ भी नहीं सीखेंगे हम
लॉकडाउन के दिनों से?

11 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 08 जून 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. वाह!ओंकार जी ,बहुत खूब । सीख लेनी तो चाहिए ...।

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  3. क्या कुछ भी नहीं सीखेंगे हम
    लॉकडाउन के दिनों से?
    सीखना है होगा बहुत अच्छी रचना

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  4. सादर नमन
    क्या लौट जाएंगे हम फिर से
    उसी बदहवास युग में,

    हाँ शायद। ..आदी हो चुके हम बदहवास होने के
    काश कुछ सीख पाते मगर। ..नहीं
    अच्छी प्रस्तुति

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  5. पता नहीं हमने सबक लिया या नहीं ! शायद फिर ऐसा ही होने वाला है

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  6. सही है! आज यही चिंतन है सब ओर, और मन में डर भी फिर से वही लिजलिजा एहसास।
    सार्थक सृजन।

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