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बुधवार, 9 दिसंबर 2020

५१२. मास्क



वैसे तो हम सब 

हमेशा लगाते थे,

इन दिनों तो बस 

दिखा रहे हैं.

**

जो सामने था,

वही तो मुखौटा था,

अब जो चढ़ा है,

मुखौटे पर मास्क नहीं,

तो और क्या है?

**

आँखों पर क्यों चढ़ा रखा है?

मुँह और नाक ही काफ़ी था,

मास्क का बहाना बनाकर 

कम-से-कम नज़रें तो मत चुराओ.

8 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 11-12-2020) को "दहलीज़ से काई नहीं जाने वाली" (चर्चा अंक- 3912) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।
    धन्यवाद.

    "मीना भारद्वाज"

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  2. आँखों पर क्यों चढ़ा रखा है?

    मुँह और नाक ही काफ़ी था,

    मास्क का बहाना बनाकर

    कम-से-कम नज़रें तो मत चुराओ...बिल्कुल सत्य कथन..।ऐसा हो भी रहा है..।

    जवाब देंहटाएं
  3. जो सामने था,

    वही तो मुखौटा था,

    अब जो चढ़ा है,

    मुखौटे पर मास्क नहीं,

    तो और क्या है
    वाह बहुत सुंदर 👌

    जवाब देंहटाएं
  4. आँखों पर क्यों चढ़ा रखा है?
    मुँह और नाक ही काफ़ी था,
    मास्क का बहाना बनाकर
    कम-से-कम नज़रें तो मत चुराओ.

    सुन्दर सृजन....

    जवाब देंहटाएं
  5. आँखों पर क्यों चढ़ा रखा है?
    मुँह और नाक ही काफ़ी था,
    मास्क का बहाना बनाकर
    कम-से-कम नज़रें तो मत चुराओ.
    वाह!!!
    बहुत सुन्दर।

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  6. वाह गज़ब यथार्थ पर सीधा प्रहार सच सटीक।

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