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मंगलवार, 22 दिसंबर 2020

५१६.विधवा से



ओ विधवा,

तुमने मेहँदी लगाना,

नाखून रंगना,

माँग सवारना,

बिंदी लगाना,

रंगीन कपड़े पहनना,

सजना, सवरना -

सब छोड़ दिया, 

ठीक नहीं किया,

पर तुमने बहुत ग़लत किया 

कि हँसना छोड़ दिया.

7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही कम शब्दों में कही गईं बहुत बड़ी बात..सशक्त रचना..

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 23 दिसंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. हृदयस्पर्शी रचना - - सामजिक परिवर्तन को इंगित करती हुई, गहन अभिव्यक्ति के साथ लिखी गई, सुन्दर सृजन।

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  4. एकदम सही बात... एकदम सही मुद्दा उठाया आपने... पर ये सब वो स्वयं नहीं करती बल्कि थोपा जाता है हमारे समाज द्वारा... हमारे परिवारों द्वारा... जिनपर साहित्यिक चोट अधिक आवश्यक है... हो सके तो इन सबको इंगित करती हुई रचना भी लिखें...

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