ओ विधवा,
तुमने मेहँदी लगाना,
नाखून रंगना,
माँग सवारना,
बिंदी लगाना,
रंगीन कपड़े पहनना,
सजना, सवरना -
सब छोड़ दिया,
ठीक नहीं किया,
पर तुमने बहुत ग़लत किया
कि हँसना छोड़ दिया.
बहुत ही कम शब्दों में कही गईं बहुत बड़ी बात..सशक्त रचना..
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 23 दिसंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
सुंदर अभिव्यक्ति
जीवन की आशा जगाती सुन्दर रचना।
मर्मस्पर्शी
हृदयस्पर्शी रचना - - सामजिक परिवर्तन को इंगित करती हुई, गहन अभिव्यक्ति के साथ लिखी गई, सुन्दर सृजन।
एकदम सही बात... एकदम सही मुद्दा उठाया आपने... पर ये सब वो स्वयं नहीं करती बल्कि थोपा जाता है हमारे समाज द्वारा... हमारे परिवारों द्वारा... जिनपर साहित्यिक चोट अधिक आवश्यक है... हो सके तो इन सबको इंगित करती हुई रचना भी लिखें...
बहुत ही कम शब्दों में कही गईं बहुत बड़ी बात..सशक्त रचना..
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 23 दिसंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंजीवन की आशा जगाती सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी
जवाब देंहटाएंहृदयस्पर्शी रचना - - सामजिक परिवर्तन को इंगित करती हुई, गहन अभिव्यक्ति के साथ लिखी गई, सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंएकदम सही बात... एकदम सही मुद्दा उठाया आपने... पर ये सब वो स्वयं नहीं करती बल्कि थोपा जाता है हमारे समाज द्वारा... हमारे परिवारों द्वारा... जिनपर साहित्यिक चोट अधिक आवश्यक है... हो सके तो इन सबको इंगित करती हुई रचना भी लिखें...
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