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शनिवार, 26 दिसंबर 2020

५१८.हँसना ज़रूरी है


हँसो कि हँसना ज़रूरी है.


बाहर नहीं, तो अन्दर ही सही,

खुले में नहीं,तो बंद कमरे में सही,

कहीं भी सही,पर हँसना ज़रूरी है.


दिन में नहीं,तो रात में सही,

सुबह को नहीं,तो शाम को सही,

कभी भी सही,पर हँसना ज़रूरी है.


ज़ोर से नहीं, तो धीरे से सही,

धीरे से नहीं,तो बेआवाज़ ही सही,

कैसे भी सही,पर हँसना ज़रूरी है.


अभी अवसर है, जी भर के हँस लो,

कम-से-कम अकेले में, बेआवाज़ हंसने पर

अभी कोई पाबंदी नहीं है.

16 टिप्‍पणियां:

  1. सार्थक संदेश देती सार्थक रचना..इस कविता को अमल में लाना जीवन के लिए अति आवश्यक है..सादर ..

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  2. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 28 दिसंबर 2020 को 'होंगे नूतन साल में, फिर अच्छे सम्बन्ध' (चर्चा अंक 3929) पर भी होगी।--
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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  3. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 28 दिसम्बर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. सही कहा आपने हँसना जरूरी है...
    बहुत सुन्दर सार्थक एवं सारगर्भित सृजन।

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  5. प्रेरक संदेश देती बहुत सुंदर रचना... - डॉ. शरद सिंह

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  6. जी आदरणीय । हंसना जरूरी है । सुन्दर प्रस्तुति ।

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  7. बहुत सुंदर रचना
    आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम जैसे हसना तो दूर मुस्कुराना भी भूल गए हैं आपकी रचना पढ़कर अच्छा लगा

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