बड़ी मुश्किल से भगाया था तुमको,
पर तुम फिर लौट आए,
पहले जो तबाही मचाई थी,
उससे जी नहीं भरा तुम्हारा?
थोड़ी सी भी शर्म बची हो,
तो वापस लौट जाओ,
जिन्हें धक्के देकर निकाला जाता है,
वे इस तरह लौटा नहीं करते.
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एक बार चला गया है,
पर वापस भी आ सकता है,
कोई राहगीर नहीं,
चोर उचक्का है,
उसे तुम्हारी अनुमति नहीं,
असावधानी का इंतज़ार है.
सादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 04-12-2020) को "उषा की लाली" (चर्चा अंक- 3905) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।
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"मीना भारद्वाज"
सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सटीक और सामयिक रचना।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंउसे तुम्हारी अनुमति नहीं,
जवाब देंहटाएंअसावधानी का इंतज़ार है.
इसी कहा है जब तक दवाई नहीं तब तक ढ़िलाई नहीं....
बहुत सुन्दर।
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंकोरोना महामारी नहीं बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा आपदा में अवसर है।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबुरी आदतें भी आसानी से कहाँ जाती हैं ... लौट लौट आती हैं ...
जवाब देंहटाएंविश्वास है ज़रूर भागेगा ये ...