मछुआरे,
तुम मझधार में गए थे,
तुम्हें तो लौट आना था,
पर तुम उस पार चले गए.
अब नहीं लौटोगे तुम इस पार,
अगर मुझे तुमसे मिलना है,
तो मुझे भी जाना होगा उस पार
और अगर मैं गया,
तो मैं भी नहीं लौटूंगा कभी इस पार.
**
मछुआरे,
तुम मछली पकड़ने गए थे
गहरे समुद्र में,
हर बार तो तुम लौट आते थे,
इस बार कौन से मोती मिले
कि तुम लौटे ही नहीं?
**
मछुआरे,
इस बार मैं भी चलूँगा तुम्हारे साथ,
दूर समुद्र में जाएंगे,
ख़ूब मछलियाँ पकड़ेंगे,
पर मुझे तैरना नहीं आता,
तुम्हें बचाना आता है न?
वाह
जवाब देंहटाएंबहुत खूब। शुभकामनाएं। बधाई।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार,
हटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 18-12-2020) को "बेटियाँ -पवन-ऋचाएँ हैं" (चर्चा अंक- 3919) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।
धन्यवाद.
…
"मीना भारद्वाज"
शानदार..!
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 17 दिसंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंसुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंमछुआरे,
जवाब देंहटाएंतुम मझधार में गए थे,
तुम्हें तो लौट आना था,
पर तुम उस पार चले गए.
अब नहीं लौटोगे तुम इस पार,
अगर मुझे तुमसे मिलना है,
तो मुझे भी जाना होगा उस पार
और अगर मैं गया,
तो मैं भी नहीं लौटूंगा कभी इस पार...बहुत सुंदर..भावों से भरी हुई पंक्तियाँ..।
सुन्दर भावाभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंतुम मछली पकड़ने गए थे
जवाब देंहटाएंगहरे समुद्र में,
हर बार तो तुम लौट आते थे,
इस बार कौन से मोती मिले
कि तुम लौटे ही नहीं?
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति।
वाह ! बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत खूब गहन भाव गहन व्यंजना ।
जवाब देंहटाएंबहुत भावपूर्ण रचनाएँ, बधाई.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत
जवाब देंहटाएंगहरे भाव समेटे ...
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