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गुरुवार, 24 दिसंबर 2020

५१७. वह स्त्री




बचपन में पिता ने कहा,

'चुप रहो',

जवानी में पति ने कहा,

'चुप रहो',

बुढ़ापे में बेटे ने कहा,

'चुप रहो',

हर किसी ने कहा,

'चुप रहो',

उसके बोलने का समय 

कभी आया ही नहीं.


एक दिन वह मर गई,

किसी ने नहीं पूछा उससे, 

'तुम्हारी अंतिम इच्छा क्या है?'

कोई पूछ भी लेता,

तो वह क्या जवाब देती,

उसे तो बोलना आता ही नहीं था. 


15 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 25 दिसंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (२६-१२-२०२०) को 'यादें' (चर्चा अंक- ३९२७) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    --
    अनीता सैनी

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  3. –सत्य कथन आपका

    इसलिए मैं सदा कहती हूँ
    गऊ सी मूक बेटियों को
    समय रहते चेत जाओ
    बोलो कि बोलना जरूरी है

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  4. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  5. वाकई..कड़वी सच्चाई है एक स्त्री के जीवन की। बहुत ही सुंदर और सार्थक रचना। उम्मीद है परिवर्तन शीघ्र होगा। सादर शुभकामनाएं।

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  6. अद्भुत!
    पर समय अब बदलाव ले चुका वो बोलती भी है और औरों को चुप भी करवाती है।

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  7. मार्मिक एवं सच्चाई को जताती हुई बेहतरीन रचना,
    अबला जीवन हाय तेरी यही कहानी

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