बहुत तड़पाया तुमने,
बहुत रुलाया,
मजबूर किया
घर में क़ैद रहने को,
मास्क लगवाए
मुस्कराते चेहरों पर,
दूरी पैदा की
अपनों के बीच.
कितनों को ला खड़ा किया
सड़क पर तुमने,
कितनों को भूख से
बेहाल कर दिया,
कितनों को छीन लिया
हमेशा-हमेशा के लिए.
देखो,
दिसंबर आ गया है,
अब तुम्हें जाना ही होगा,
कितना भी जालिम क्यों न हो कोई,
जाना ही होता है उसे कभी-न-कभी.
बहुत बढ़िया सर!
जवाब देंहटाएंसच है।
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा सोमवार ( 07-12-2020) को "वसुधा के अंचल पर" (चर्चा अंक- 3908) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।
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"मीना भारद्वाज"
2020 बीस विष से अब मुक्ति मिलेगी चलो दिसम्बर आ गया
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर।
सार्थक और सामयिक रचना।
जवाब देंहटाएंकितना भी जालिम क्यों न हो कोई,
जवाब देंहटाएंजाना ही होता है उसे कभी-न-कभी.
–सच्चाई
सच्ची बात।
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सत्य कहा है आपने..। सारगर्भित रचना..।
जवाब देंहटाएंकितना भी जालिम क्यों न हो कोई,
जवाब देंहटाएंजाना ही होता है उसे कभी-न-कभी.प्रभावशाली लेखन।
वाकई इसे जाना ही होगा। बहुत बढ़िया सामयिक रचना के लिए आपको बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
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