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शनिवार, 12 दिसंबर 2020

५१३. गाँव वापसी


अब वे रास्ते नहीं रहे,

जिन पर मैं चलता था,

पक्की सड़कें हैं,

जिन पर बैलगाड़ियाँ नहीं,

मोटरगाड़ियाँ दौड़ती हैं,

पैडल वाले रिक्शे नहीं,

अब बैटरी-रिक्शे चलते हैं,

पक्के मकान उग आए हैं

खुले मैदानों में,

गुम हैं वे ग़रीब से होटल 

जिनमें चाय-समोसे बनते थे,

काठ और टीन के देवालय की जगह 

अब भव्य मंदिर खड़ा है,

अंग्रेज़ी बोलते बच्चे अब 

सर्र से निकल जाते हैं बगल से,

हाँ,अब भी वहीं है वह स्कूल,

जिसमें मैं पढ़ता था,

पर मुझे पहचानता नहीं,

जाता हूँ, तो पूछता है,

वह कौन सा साल था,

जब तुम यहाँ पढ़ते थे?

12 टिप्‍पणियां:

  1. बदलाव अच्छा है
    पर पुरानी बातों से लगाव रह जाता है।
    सुंदर।

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 13 दिसंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. बचपन की यादों के झूले में झुलाती रचना..।सुंदर..

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  4. लाजवाब भावाभिव्यक्ति । अति सुन्दर सृजन ।

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  5. परिवर्तन प्रकृति का नियम है बहुत उम्मदा अभिव्यक्ति।

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  6. गांवों में होने वाले बदलाव पर सटीक लेखन अंतिम प्रश्न मन को छू गया।

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  7. शैशव का मासूम अहसास, जो उम्र भर साथ चलता है, चाहे चारों तरफ कितना भी बदलाव आ जाए - - सुन्दर सृजन।

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