अब वे रास्ते नहीं रहे,
जिन पर मैं चलता था,
पक्की सड़कें हैं,
जिन पर बैलगाड़ियाँ नहीं,
मोटरगाड़ियाँ दौड़ती हैं,
पैडल वाले रिक्शे नहीं,
अब बैटरी-रिक्शे चलते हैं,
पक्के मकान उग आए हैं
खुले मैदानों में,
गुम हैं वे ग़रीब से होटल
जिनमें चाय-समोसे बनते थे,
काठ और टीन के देवालय की जगह
अब भव्य मंदिर खड़ा है,
अंग्रेज़ी बोलते बच्चे अब
सर्र से निकल जाते हैं बगल से,
हाँ,अब भी वहीं है वह स्कूल,
जिसमें मैं पढ़ता था,
पर मुझे पहचानता नहीं,
जाता हूँ, तो पूछता है,
वह कौन सा साल था,
जब तुम यहाँ पढ़ते थे?
बदलाव अच्छा है
जवाब देंहटाएंपर पुरानी बातों से लगाव रह जाता है।
सुंदर।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 13 दिसंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंबचपन की यादों के झूले में झुलाती रचना..।सुंदर..
जवाब देंहटाएंलाजवाब भावाभिव्यक्ति । अति सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएंपरिवर्तन प्रकृति का नियम है बहुत उम्मदा अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण रचना ।
जवाब देंहटाएंगांवों में होने वाले बदलाव पर सटीक लेखन अंतिम प्रश्न मन को छू गया।
जवाब देंहटाएंशैशव का मासूम अहसास, जो उम्र भर साथ चलता है, चाहे चारों तरफ कितना भी बदलाव आ जाए - - सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर।
जवाब देंहटाएंबदलाव की बयार चलती रहती है ...
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