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शुक्रवार, 27 नवंबर 2020

५०८. मास्क

राग दिल्ली वेबसाइट(https://www.raagdelhi.com/) पर प्रकाशित मेरी कविताएँ 



मास्क – 1


तुम्हारे मुँह और नाक पर

मास्क लगा है,

पर तुम बोल सकते हो,

बोलना मत छोड़ो,

जब तक कि तुम्हें

पूरी तरह चुप न करा दिया जाय.

**

मास्क – 2


बहुत भोले हैं हम,

कहते हैं, मास्क के चलते  

लोग पहचाने नहीं जा रहे,

जैसे कि बिना मास्क के

पहचाने जा रहे थे.

**

मास्क – 3


मास्क लगाया ही है,

तो पूरी तरह लगाओ,

जब खुल के छिपा रहे हो,

तो आधा-अधूरा क्या छिपाना?

**

मास्क – 4


सभी घूम रहे हैं मास्क लगाकर,

सभी एक से लगते हैं,

वैसे भी क्या फ़र्क है

आदमी और आदमी में?

*****

9 टिप्‍पणियां:

  1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (29-11-2020) को  "असम्भव कुछ भी नहीं"  (चर्चा अंक-3900)   पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    --   
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    --
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

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  3. बेहतरीन.....

    इन विचारोत्तेजक कविताओं के लिए साधुवाद

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  4. अर्थपूर्ण, सामयिक व सुन्दर रचना - - नमन सह।

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  5. वैसे भी क्या फ़र्क है
    आदमी और आदमी में?

    –क्या सच में फर्क नहीं आदमी और आदमी में..!

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  6. बहुत खूब ... मास्क भी सियासी है, स्वतंत्र है ... प्रतीक है ...

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