क्या आपने चाँद की ओर ताकते हुए
कभी चाँदनी में नहाकर देखा है?
लगता है किसी छोटे से फव्वारे से
ढेर सारी रौशनी बरस रही हो.
अचानक चाँद बादलों में छिप जाता है,
अतृप्ति का भाव मन में जगाता है,
पर थोड़ी देर में बादल छंट जाते हैं,
दूधिया चाँदनी फिर से बरसने लगती है .
कभी घर से निकलकर देखो
या खुली छत पर जाकर देखो,
अभी तो चाँद आकाश में है,
नहा लो जी भर के चाँदनी में,
फिर न जाने कितना इंतज़ार करना पड़े.
रातें अमावस की भी होती हैं
और कभी-कभी ऐसा भी होता है
कि रात तो पूनम की होती है,
पर ज़िद्दी बादल चाँद को उगने नहीं देते.
अति सुन्दर!!
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 06 नवंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया।
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (०७-११-२०२०) को 'मन की वीथियां' (चर्चा अंक- ३८७८) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
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अनीता सैनी
कभी घर से निकलकर देखो
जवाब देंहटाएंया खुली छत पर जाकर देखो,
अभी तो चाँद आकाश में है,
नहा लो जी भर के चाँदनी में,
फिर न जाने कितना इंतज़ार करना पड़े.
बहुत अच्छी कविता ओंकार जी 💐
साधुवाद 🙏
सादर,
डॉ. वर्षा सिंह
खुले छत पर सोना और चाँद चाँदनी सप्तऋषि से बातें करना बेहद पसंद था... जब से अपार्टमेंट में ठिकाना हुआ बिछुड़न...
जवाब देंहटाएं–सुन्दर लेखन
वाह ! प्रकृति के सौन्दर्य का आस्वादन कराती सुंदर रचना !
जवाब देंहटाएंचाँद छिपा बदली में.... पर उसका रंग रूप और छटा बिखेरना जारी रहता है ... बहुत खूब जी
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