रेलगाड़ी की पटरियाँ
चलती चली जाती हैं,
किसी पटरी से मिलती हैं,
तो किसी से बिछड़ती हैं,
कभी जंगलों से गुज़रती हैं,
तो कभी रेगिस्तानों से,
कभी चट्टानों से,
तो कभी मैदानों से.
कभी सख्त ज़मीन पर चलती हैं,
तो कभी मुलायम मिट्टी पर,
आख़िर एक जगह पहुँचकर
रुक जाती हैं रेल की पटरियाँ,
जीवन भी ऐसा ही है,
रेल की पटरियों जैसा.
बहुत सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 03 नवंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंजीवन भी ऐसा ही है,
जवाब देंहटाएंरेल की पटरियों जैसा.
सत्य सर! वाकई में जीवन भी ऐसे ही गुजरता है । सुन्दर सृजन।
बहुत ही शानदार लिखा ....
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंGreat work RAJASTHAN GK
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