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सोमवार, 2 नवंबर 2020

४९८. पटरियाँ

 Rails, Soft, Gleise, Railway

रेलगाड़ी की पटरियाँ

चलती चली जाती हैं,

किसी पटरी से मिलती हैं,

तो किसी से बिछड़ती हैं,

कभी जंगलों से गुज़रती हैं,

तो कभी रेगिस्तानों से,

कभी चट्टानों से,

तो कभी मैदानों से.

कभी सख्त ज़मीन पर चलती हैं,

तो कभी मुलायम मिट्टी पर,

आख़िर एक जगह पहुँचकर

रुक जाती हैं रेल की पटरियाँ,

जीवन भी ऐसा ही है,

रेल की पटरियों जैसा.

7 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 03 नवंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. जीवन भी ऐसा ही है,
    रेल की पटरियों जैसा.
    सत्य सर! वाकई में जीवन भी ऐसे ही गुजरता है । सुन्दर सृजन।

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