राग दिल्ली वेबसाइट(https://www.raagdelhi.com/) पर प्रकाशित मेरी कविताएँ
मास्क – 1
तुम्हारे मुँह और नाक पर
मास्क लगा है,
पर तुम बोल सकते हो,
बोलना मत छोड़ो,
जब तक कि तुम्हें
पूरी तरह चुप न करा दिया जाय.
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मास्क – 2
बहुत भोले हैं हम,
कहते हैं, मास्क के चलते
लोग पहचाने नहीं जा रहे,
जैसे कि बिना मास्क के
पहचाने जा रहे थे.
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मास्क – 3
मास्क लगाया ही है,
तो पूरी तरह लगाओ,
जब खुल के छिपा रहे हो,
तो आधा-अधूरा क्या छिपाना?
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मास्क – 4
सभी घूम रहे हैं मास्क लगाकर,
सभी एक से लगते हैं,
वैसे भी क्या फ़र्क है
आदमी और आदमी में?
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इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंयह लिंक खुल नहीं रहा।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (29-11-2020) को "असम्भव कुछ भी नहीं" (चर्चा अंक-3900) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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उत्तम।
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट रचना।
जवाब देंहटाएंसादर।
बेहतरीन.....
जवाब देंहटाएंइन विचारोत्तेजक कविताओं के लिए साधुवाद
अर्थपूर्ण, सामयिक व सुन्दर रचना - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंवैसे भी क्या फ़र्क है
जवाब देंहटाएंआदमी और आदमी में?
–क्या सच में फर्क नहीं आदमी और आदमी में..!
बहुत खूब ... मास्क भी सियासी है, स्वतंत्र है ... प्रतीक है ...
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