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रविवार, 27 सितंबर 2020

४८६. मिलन



नदी समंदर से मिली,

तो पता चला 

कि वह तो खारा था,

नदी ने सोचा,

खारे समंदर के साथ रह लेगी,

दोनों की अलग पहचान होगी,

पर समंदर को यह मंज़ूर नहीं था,

वह आमादा था 

कि मीठी नदी भी 

उसकी तरह खारी हो जाय.


अंत में वही हुआ 

जो समंदर चाहता था,

समंदर अब ख़ुश है.

8 टिप्‍पणियां:

  1. वास्तविकता का सुन्दर शब्द चित्र ।

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 28 सितंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. अंत में वही हुआ

    जो समंदर चाहता था,

    समंदर अब ख़ुश है.,,,,,,,बहुत सुंदर,

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  4. एक से बढ़कर एक कविता संग्रह किया है, थैंक्स देता हूँ आपको इसके लिए और भविष्य की शुभकामनाये भी |











    Todaynewsmint

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  5. सब दूसरों को खुद जैसा बनाना चाहते है..खुद को दूसरों के साथ बदला मंजूर नहीं..कम से कम अपने-अपने आस्तित्व के साथ-सब को जीने के स्वछंदता तो मिलनी ही चाहिए न,गहरे भाव समेटे सुंदर सृजन,सादर नमन आपको

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    1. आपसे 100 प्र‍त‍िशत सहमत हूं काम‍िनी जी, परंतु वर्चस्व की लड़ाई न कभी खत्म हुई है ना होगी...

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  6. नमस्कार ओंकार जी , समंदर अब ख़ुश है.... परंतु नदी का क्या ...बहुत ही गहरी और आत्मा को टटोलती रचना

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