रेलगाड़ी,
रोज़ तो तुम देर से आती हो,
आज उन्हें जाना है,
तो समय पर आ धमकी?
कौन-सी बदनामी हो जाती,
जो आज भी तुम देर से आती?
क्या बिगड़ जाता तुम्हारा,
जो सिग्नल पर ज़रा रुक जाती?
कौन सा अनर्थ हो जाता,
जो थोड़ी देर सुस्ता लेती?
जिन्हें जाना था,वे तो नहीं माने,
पर तुमने कौन सी दुश्मनी निभाई,
मैंने क्या बिगाड़ा था तुम्हारा,
रेलगाड़ी, तुमने क्यों जल्दी दिखाई?
बहुत सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएंसच अपने प्रिय दूर जाते हैं तो समय कम पड़ जाता है
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति
जाने वाले को कौन रोक सकता है। बहुत अच्छी कविता।
जवाब देंहटाएंहाहाहाहाहा... भाईए जी, लगता है बहुत तगड़ा धोखा दिया है किसी रेलगाड़ी ने... बहरहाल... जो भी हो... इसी बहाने एक खूबसूरत रचना तो लिखवा ही ली आपसे... सरल भाषा पर संवेदनशील... भावों से ओत-प्रोत... लगा कि जैसे रेलगाड़ी से बात हो रही हो.... बेहद खास हो जाता है मामला जब एक लेख - कवि - शायर या अन्य कोई कलाकार निर्जीवों को भी सजीव बनाकर उनसे बातें करने लगता है... उनसे रिश्ता कायम कर लेता है... साधुवाद स्वीकारें भाई जी...!!!
जवाब देंहटाएं