दशरथ ने चलाया है
शब्दभेदी वाण,
मारा गया है श्रवण,
अनाथ हो गए हैं
उसके अंधे माँ-बाप.
अफ़सोस है दशरथ को,
अयोध्यापति है वह,
पर उसके वश में नहीं है
नुकसान की भरपाई करना.
मैं समझ नहीं पाता
कि जिनके निशाने अचूक होते हैं,
वे किस अधिकार से
बिना सोचे समझे
कहीं भी तीर चला देते हैं?
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 06 सितंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंलाजवाब सृजन ।
जवाब देंहटाएंविचारणीय प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंशक्ति का दुरपयोग करते हैं ऐसे लोग ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सृजन।
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार ( 7 सितंबर 2020) को 'ख़ुद आज़ाद होकर कर रहा सारे जहां में चहल-क़दमी' (चर्चा अंक 3817) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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-रवीन्द्र सिंह यादव
बहुत बढ़िया ।आदरणीय शुभकामनाएँ ।
जवाब देंहटाएंसुंदर सारगर्भित सृजन।
जवाब देंहटाएंसादर
शब्दों के घाव बहुत गहरे होते हैं। सारगर्भित रचना।
जवाब देंहटाएंगहन प्रहार करती सारगर्भित रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंविचारणीय और गहरी रचना.
जवाब देंहटाएंमैं समझ नहीं पाता
जवाब देंहटाएंकि जिनके निशाने अचूक होते हैं,
वे किस अधिकार से
बिना सोचे समझे
कहीं भी तीर चला देते हैं?
व्यंग्य बहुत ही तीखा है...