आज कहीं नहीं जाना,
तो ऐसा करो,
अपने अन्दर उतरो,
गहरे तक उतरो.
तुम हैरान रह जाओगे,
वहां तुम्हें जाले मिलेंगे,
गन्दगी मिलेगी,
फैली हुई मिलेगी
सड़ांध हर कोने में.
अपने अन्दर उतरोगे,
तो तुम्हें वह सब मिलेगा,
जो तुम हमेशा सोचते थे
कि तुम्हारे अन्दर नहीं,
कहीं बाहर है.
बहुत अच्छा..!
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (13-09-2020) को "सफ़ेदपोशों के नाम बंद लिफ़ाफ़े में क्यों" (चर्चा अंक-3823) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 12 सितंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंअपने भीतर की यात्रा करवाती रचना...क्या खूब लिखा है ओंकार जी
जवाब देंहटाएंअद्भुत सृजन ।
जवाब देंहटाएंआत्मदर्शन का बोध
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
अपने अन्दर उतरोगे,
जवाब देंहटाएंतो तुम्हें वह सब मिलेगा,
जो तुम हमेशा सोचते थे
कि तुम्हारे अन्दर नहीं,
कहीं बाहर है.
-सत्य कथन ... लेकिन परबचन भर ... सबके वश की बात नहीं..
अपने अन्दर उतरोगे,
जवाब देंहटाएंतो तुम्हें वह सब मिलेगा,
जो तुम हमेशा सोचते थे
कि तुम्हारे अन्दर नहीं,
कहीं बाहर है.,,,, बहुत सुंदर अत्म दर्शन कराती रचना ।
गज़ब चिंतन !!
जवाब देंहटाएंबधाई ओंकार
आप वास्तव में तारीफ़ के पात्र हो. धन्यवाद
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