आजकल मेरे साथ कोई नहीं,
पर मैं अकेला नहीं हूँ.
सुबह-सवेरे आ जाते हैं
मुझसे मिलने परिंदे,
मैं अपनी बालकनी में
आराम-कुर्सी पर बैठ जाता हूँ,
वे मुंडेर पर जम जाते हैं,
फिर ख़ूब बातें करते हैं हम.
मैं खिड़की के पार
पेड़ों पर उग आईं
कोमल पत्तियों को देखता हूँ,
हवा में झूमती
डालियों को देखता हूँ.
मैं गमलों में खिल रहे
फूलों को देखता हूँ,
कलियों को देखता हूँ,
जो फूल बनने के इंतज़ार में हैं.
मैं देखता हूँ
आकाश को लाल होते,
सूरज को निकलते,
उसे रंग बदलते.
शाम को सूरज से मिलने
मैं फिर पहुँच जाता हूँ,
देखता हूँ उसका रंग बदलना
और धीरे-धीरे डूब जाना.
रात को बालकनी से
मैं देखता हूँ घटते-बढ़ते चाँद को,
बादलों से उसकी लुकाछिपी,
फिर थककर सो जाता हूँ.
आजकल मैं अकेला नहीं हूँ,
न ही फ़ुर्सत में हूँ,
आजकल मैं उनके साथ हूँ
जिनकी मैंने हमेशा अनदेखी की है.
वाह 🌻
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (18-09-2020) को "सबसे बड़े नेता हैं नरेंद्र मोदी" (चर्चा अंक-3828) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!--
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह!!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर सटीक भावाभिव्यक्ति।
वाह
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन
आजकल मैं अकेला नहीं हूँ,
जवाब देंहटाएंन ही फ़ुर्सत में हूँ,
आजकल मैं उनके साथ हूँ
जिनकी मैंने हमेशा अनदेखी की है.
बहुत सुंदर।
अद्भुत पंक्तियां
जवाब देंहटाएंअद्भुत पंक्तियां
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