मुझे रहने ही दो
फ़ोटो से बाहर,
मुझे शामिल करोगे,
तो दिक्कत होगी तुम्हें.
मैं साफ़ कपड़े पहन लूँगा,
बाल बनवा लूँगा,
दाढ़ी-मूंछ कटवा लूँगा,
इत्र भी छिड़क लूँगा,
भले ही वह फ़ोटो में न आए,
पर क्लिक करते वक़्त
जब तुम कहोगे
कि मुस्कराओ,
तो मैं मुस्करा नहीं पाऊंगा.
मुझे नहीं आती
अन्दर से दुखी होकर
बाहर से मुस्कराने की कला
और तुम नहीं चाहोगे
कोई ऐसा फ़ोटो खींचना,
जो सच बयाँ करे.
भावपूर्ण सृजन !
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया बात कही अपने कविता के माध्यम से। बाकि सब तस्वीरों में इतिहास..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंहिन्दी दिवस की अशेष शुभकामनाएँ।
वाह , सच यही है , हर ओर मुखोटे हैं !
जवाब देंहटाएंकितनी सुंदर, सटीक रचना। वाह!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (15-9 -2020 ) को "हिंदी बोलने पर शर्म नहीं, गर्व कीजिए" (चर्चा अंक 3825) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
मुझे नहीं आती
जवाब देंहटाएंअन्दर से दुखी होकर
बाहर से मुस्कराने की कला
और तुम नहीं चाहोगे
कोई ऐसा फ़ोटो खींचना,
जो सच बयाँ क,,,,, बहुत भावपूर्ण और सच को वंया करती रचना ।
हिन्दी दिवस की शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंसुंदर और सटीक रचना
जवाब देंहटाएंवाह
वाह!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सटीक मर्म छूती रचना।